भूतिया ट्रेन मौत की सवारी

संध्या अपने गाँव से 500 km दूर दिल्ली के एक कालेज में पडती थी । और अब वहा कॉलेज की परीक्षा चल रही थी। संध्या पडाई में हूशयार थी।
लेकिन उसे हॉरर स्टोरी (Horror Story) पडना जादा अच्छा लगता था वो कोई न कोई कीताब (Book) पड़ती रहती थी।
संध्या अपनी कॉलेज की परीक्षा समाप्त होने के बाद अपने गाँव जाने के लिए एक ट्रेन पकडने दिल्ली के रेलवे स्टेशन पहुँची ।
शाम का समय था । और यह ट्रेन रात को दिल्ली से चलती थी। यह गाँव जाने के लिए एकमात्र ट्रेन थी। जिसमे उसकी टिकट अभी तक वेटिंग लिस्ट में थी ।
उसने एक हफ्ते पहले ही टिकट बुक करवा ली थी। लेकिन अब भी कंफर्म नहीं हुई थी। स्टेशन पर हल्की हल चल थी।
रात के 10:00 बज रहे थे और ठंडी हवा स्टेशन के चारों ओर बह रही थी ।
संध्या को अकेले सफर करने की आदत थी। लेकिन इस बार कुछ अलग महसूस हो रहा था।
संध्या स्टेशन के एक बेंच में बैठी थी तभी अचानक उसकी नजर स्टेशन के एक छोटे से बुक स्टोर पर पड़ी।
संध्या उठकर बुक स्टोर पर चली गई। वह पढ़ने के लिए हॉरर स्टोरी बुक ढूंढने लगी।
बुक स्टोर का मालिक देखने में बड़ा अजीब था लेकिन संध्या चुपचाप बुक देखने में व्यस्त थी। फिर संध्या ने उस व्यक्ति को पूछा, ‘क्या यहां कोई हॉरर स्टोरी बुक नहीं है’।
लेकिन उस आदमी ने कोई जवाब नहीं दिया संध्या ने फिर उस व्यक्ति से पूछा लेकिन वह आदमी चुपचाप संध्या को घूर रहा था।
कुछ देर तक वह आदमी संध्या को घूरता रहा, फिर अचानक उसे एक हॉरर बुक ‘भूतिया ट्रेन’ पुरानी आलमारी से निकाल कर दे दी।
तभी अचानक ट्रेन की आवाज आने लगी। संध्या जल्दी-जल्दी से वह बुक लेकर वहां से जाने लगी।
उसने ट्रेन में चढ़ते ही एक खाली सीट पर बैठने का मन बना लिया।
टिकट चेकर को ढूंढने के बजाय वह एक कोने में बैठ गई और अपने बैग से वही किताब निकाली और उसे पढ़ने लगी।
उसे डरावनी कहानियां पढ़ने का शौक था और यह सफर भी उसने किताब पढ़ते हुए बिताने का सोचा।
ट्रेन धीरे-धीरे चलने लगी, रात गहराती जा रही थी। और ट्रेन में यात्री कम होते जा रहे थे ।
ट्रेन के डब्बे में एक अजीब सी शांति थी | करीब एक घंटे बाद जब ट्रेन एक सुनसान स्टेशन पर रुकी तो संध्या ने महसूस किया कि उसके आसपास की सिटे खाली हो चुकी थी।
उसने इधर-उधर देखा लेकिन किसी यात्री का नामोनिशान नहीं था
अचानक टिकट चेककर उसके पास आया और टिकट मांगी, संध्या ने उसे वेटिंग लिस्ट वाली टिकट थमा दी।
चेककर ने गहरी नजरों से उसे देखा और कहा क्या तुम जानती हो कि यह ‘ट्रेन भूतिया’ है|
संध्या ने हंसते हुए कहा मैं अंधविश्वास पर विश्वास नहीं करती।
टिकट चेकर मुस्कुराया और आगे बढ़ गया लेकिन जैसे ही वह ट्रेन से बाहर गया संध्या को लगा कि कोई उसके पीछे खड़ा है।
उसने धीरे से गर्दन घुमाई, लेकिन वहां कोई नहीं था | उसका दिल तेजी से धड़कने लगा।
कुछ देर तक वह अपनी सीट पर बैठी इधर-उधर देखती रही | फिर वह किताब पढ़ने में वापस खो गई, कुछ देर बाद जब वह किताब पढ़ रही थी | तभी किताब के पन्ने अचानक खुद ही पलट गए।
संध्या ने घबरा कर किताब बंद कर दी | तभी ट्रेन की बत्तियां हल्की-हल्की झपकने लगी और हवा अचानक ठंडी हो गई | उसे लगा मानो कोई पास में खड़ा होकर सांस ले रहा हो।
कुछ देर बाद टिकट चेककर फिर से आया लेकिन इस बार उसका चेहरा पीला पड़ चुका था |
उसने कांपती आवाज में कहा यहां से उठ जाओ यह सीट तुम्हारे लिए नहीं है |
संध्या ने चौंक कर पूछा क्यों ?
चेककर ने धीरे से जवाब दिया, क्योंकी यह सीट पिछले साल मरे हुए एक यात्री की है जो आज भी यहां सफर करता है |
इतना सुनते है ट्रेन की खिड़कियां जोर से हिलने लगी और दरवाजे खुद ब खुद खुलने लगे संध्या ने घबरा कर इधर-उधर देखा, लेकिन कोई और यात्री नहीं था।
टिकट चेकर धीरे-धीरे गायब होने लगा | उसकी आंखों से काला धुआं निकल रहा था और देखते ही देखते वह हवा में विलीन हो गया, संध्या चीख पड़ी।
अचानक उसे लगा कि उसके पैरों को किसी ने पकड़ लिया है |
नीचे देखा तो सीट के नीचे से एक कंकाल जैसी डरावनी आकृति बाहर आ रही थी |
उसके चेहरे पर कोई आंखें नहीं थी, लेकिन वह संध्या की ओर घूर रही थी।
संध्या ने अपनी पूरी ताकत से सीट छोड़कर भागने की कोशिश की लेकिन ट्रेन की गति और तेज हो गई, चारों ओर भूतिया चीखें गूंजने लगी।
ट्रेन के शीशों पर हाथों के निशान उबर आए।
संध्या ने अपनी पूरी ताकत से खिड़की खोलने की कोशिश की, लेकिन कुछ भी काम नहीं कर रहा था
तभी उसे ध्यान आया कि यह सब किताब पढ़ने के बाद शुरू हुआ था | उसने तेजी से किताब को ट्रेन के बाहर फेंक दिया |
जैसे ही किताब ट्रेन से बाहर गिरी आवाजें आना अचानक बंद हो गई | ट्रेन में रोशनी वापस आ गई |
खिड़कियां स्थिर हो गई और सब कुछ सामान्य लगने लगा | संध्या ने राहत की सांस ली।
लेकिन तभी ट्रेन के लाउडस्पीकर से एक धीमी डरावनी आवाज आई, ‘क्या तुमने सोचा कि यह खत्म हो गया’ अगला स्टेशन तुम्हारा आखिरी होगा और इसी के साथ ट्रेन सुरंग में प्रवेश कर गई, जहां हमेशा के लिए अंधेरा छा गया।