अंधेरे का शिकारी

अंधेरे का शिकारी

रात के अंधेरे में राहुल एक सुनसान गली से गुजर रहा था।

उसे ऐसा लग रहा था कि कोई उसे देख रहा है।

तभी एक ठंडी हवा चली और धीमी फुसफुसाहट सुनाई दी। उसने पीछे मुड़कर देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था।

जैसे-जैसे वह तेजी से चलने लगा, फुसफुसाहटें और तेज़ होती गईं, उसके चारों ओर गूंजने लगीं।

अचानक, उसकी नजर दीवार पर चलती हुई एक परछाई पर पड़ी, लेकिन वहां कोई नहीं था।

परछाई धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ने लगी, और एक सर्द आवाज़ आई, “तुम मुझसे बच नहीं सकते।”

डर से कांपते हुए राहुल भागने की कोशिश करने लगा, लेकिन परछाई उसके पैरों से लिपट गई और उसे अंधेरे में घसीट लिया। उसकी चीखें रात में ही दब गईं।

सुबह जब लोग वहाँ से गुजरे, तो सिर्फ दीवार पर एक नया निशान था, जैसे किसी और की परछाई अंधेरे में समा चुकी हो। जो अब अगले शिकार का इंतजार कर रही थी।

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