खूनी गुड़िया: मासूमियत का श्राप

गाँव के सुनसान इलाके में, सात साल की आर्या को एक पुरानी, धूल भरी गुड़िया मिलती है। उसकी आँखें अजीब तरीके से चमकती थीं,
जैसे वो कुछ कहना चाह रही हो। आर्या ने उसे साफ किया और खेलने लगी।
रात होते ही, घर में अजीब आवाज़ें गूँजने लगीं। हर रात, आर्या को लगता कि गुड़िया धीरे-धीरे उसके बिस्तर के पास सरक रही है।
एक रात, उसे अलमारी में बंद करने के बावजूद, गुड़िया फिर से उसके पलंग के पास मिलती है।
अगली सुबह, आर्या की माँ उसे जगाने आई तो देखकर दहशत में आ गई—आर्या बेहोश थी, और गुड़िया के हाथों पर खून के निशान थे।
आज भी गाँव में उस गुड़िया की कहानी सुनाई जाती है, और लोग कहते हैं,
वो सिर्फ एक गुड़िया नहीं, एक श्राप था जो मासूमियत को निगल गया।