बदला लेने वाली आत्मा – एक डरावनी सच्ची घटना

बदला लेने वाली आत्मा

बात बहुत ही पुरानी है। पहाड़ो के बीच दुमरी नाम का एक बहुत ही छोटा सा गाँव था। इस गाँव के मुखिया रामलाल थे। सभी गाँववासी रामलाल की बहुत ही इज्जत करते थे और उनके विचारों, सुझावों को पूरी तरह मानते थे। रामलाल की एक ही संतान थी, चमेली। 18 की उम्र में भी चमेली का नटखटपन गया नहीं था। वह बहुत ही शरारती थी, उसके चेहरे पर कहीं भी शरारती पन नजर नहीं आता पर हाँ, उसके चेहरे से उसका भोलापन जरूर छलकता था। उस समय हर माँ-बाप की बस एक ही ख्वाइश होती थी कि उनकी लड़की को अच्छा घर-वर मिल जाए और वह अपने ससुराल में खुश रहे। रामलाल भी चमेली के लिए आस-पास के गाँवों में वर ढुंढ रहा था ।

एक बार पास के एक गाँव के उनके मुखिया मित्र ने कहा कि उनकी नजर में एक लड़का है, अगर आप तैयार हों तो मैं बात चलाऊँ? रामलाल के हाँ करते ही उनके मुखिया मित्र की अगुआई में चमेली का विवाह तय हो गया। चमेली का पति सुरेश उस समय कोलकाता में कुछ काम करता था। सुरेश देखने में बहुत ही सीधा-साधा और सुंदर युवक था। वह रामलाल को पूरी तरह से भा गया था। खैर शादी हुई और रामलाल ने नम आँखों से चमेली को विदा किया। कुछ ही दिनों में चमेली अपने ससुराल में भी सबकी प्रिय हो चुकी थी। 3 महीना चमेली के साथ बिताने के बाद सुरेश भारी मन से शहर की राह पर निकल पड़ा। चमेली ने सुरेश को समझाया कि कमाना भी जरूरी है और 4 महीने की ही तो बात है, तब तक मैं आपका इंतजार कर लूँगी।

शहर पहुँचने पर सुरेश ने फिर से अपना काम-धंधा शुरू किया पर काम में उसका मन ही नहीं लगता था। बार-बार चमेली का शरारती चेहरा, उसके आँखों के आगे घूम जाता। वह जितना भी काम में मन लगाने की कोशिश करता उतना ही चमेली की यादों में खो जाता । सुरेश की यह बेकरारी दिन व दिन बढ़ती ही जा रही थी। उसने अपने दिल की बात अपने साथ काम करने वाले अपने 3 मित्रों को बताई। ये तीनों उसके अच्छे मित्र थे। सुरेश दिन-रात अपने इन तीनों दोस्तों से चमेली की खूबसूरती और उसके शरारतीपन की बाते करता रहता। तीनों मित्र चमेली के बारे में सुन-सुनकर उसकी खूबसूरती की एक छवि अपने-अपने मन में बना लिए थे और अब बार-बार सुरेश से कहते कि भाभी से कब मिलवा रहे हो। सुरेश कहता कि मैं तो खुद ही उससे मिलने के लिए बेकरार हूँ पर समझ नहीं पा रहा हूँ कि कैसे मिलूँ?

खैर, अब सुरेश के तीनों दोस्तों के दिमाग में जो एक भयानक, घिनौनी खिचड़ी पकनी शुरू हो गई थी उससे सुरेश पूरी तरह अनजान था। उसके तीनों दोस्तों ने एक दिन सुरेश से कहा कि यार, भाभी को यहीं ले आओ। कुछ दिन रहेगी, शहर भी घूम लेगी तो उसको बहुत अच्छा लगेगा और फिर 1-2 हफ्ते में उसे वापस छोड़ आना। पर सुरेश अपने बूढ़े माँ-बाप को यादकर कहता कि नहीं यारों, मैं ऐसा नहीं कर सकता, मेरी अम्मा और बाबू की देखभाल के लिए गाँव में चमेली के अलावा और कोई नहीं है।

कुछ दिन और बीते पर ये बीतते दिन सुरेश की बेकरारी को और भी बढ़ाते जा रहे थे। अब तो सुरेश का काम में एकदम से मन नहीं लग रहा था और उसे बस गाँव दिखाई दे रहा था। एक दिन रात को सुरेश के तीनों दोस्तों ने सुरेश से कहा कि चलो हम लोग तुम्हारे गाँव चलते हैं। सुरेश अभी कुछ समझ पाता या कह पाता तब तक उसके उन तीनों दोस्तों में से एक दोस्त ने कहा कि यार टेंसन मत ले। कह देना कि अभी काम की मंदी चल रही है इसलिए गाँव आ गया। और साथ ही इसी बहाने हम मित्र लोग भी तुम्हारा गाँव देख लेंगे और भाभी के साथ ही तुम्हारे माता-पिता से भी मिल लेंगे क्योंकि हम लोगों का तो गाँव भी नहीं है। इसी शहर में पैदा हुए और इसी शहर को ही अपना घर बना लिए। हम लोग भी चाहते हैं कि कुछ दिन गांव की ताजी हवा का आनंद लें। सुरेश तो घर जाने के लिए बेकरार था ही, उसे अपने दोस्तों की बात अच्छी लगी। फिर क्या था दूसरे दिन ही सुरेश अपने उन तीनों दोस्तों के साथ अपने गाँव के लिए निकल पड़ा।

गाँव के आस-पास बहुत सारे घने जंगल थे। इस पर्वतीय इलाके के इन पहाड़वासियों के अलावा अगर कोई अनजाना जाए तो वह जरूर रास्ता भटक जाए और जंगली जानवरों का शिकार बन जाए। ट्रेन और बस की यात्रा करते-करते आखिरकार सुरेश अपने तीनों दोस्तों के साथ अपने गाँव के पास के एक छोटे से बस स्टेशन पर पहुँच ही गया। इस स्टेशन से उसके गाँव जाने के लिए अच्छी कच्ची सड़क भी न थी। जंगल से उबड़-खाबड़ रास्ते से होकर जाना पड़ता था। जंगल में चलते-चलते जब उसके दोस्त ने पूछा कि भाई सुरेश अभी तुम्हारा गाँव कितनी दूर है तो सुरेश ने प्रसन्न होकर कहा कि यार अब हम लोग पहुँचने ही वाले हैं। सुरेश की बात सुनते ही उसका दोस्त हाँफने का नाटक करते हुए वहीं बैठते हुए बोला कि यार अब मुझसे चला नहीं जाता। उसकी बात सुनते ही सुरेश ने कहा कि यार हम लोग पहुँच गए हैं और अब मुश्किल से 5-7 मिनट भी नहीं लगेंगे। पर सुरेश की बातों को अनसुनी करते हुए उसके बाकी के दोस्त भी बैठ गए। अब सुरेश बेचारा क्या करे, उसे भी रूकना पड़ा। सुरेश के रूकते ही उसके दोस्त ने अपने हाथ में लिए झोले में से एक अच्छी नई साड़ी और साथ ही चूड़ी आदि निकालते हुए कहा कि यार सुरेश, हम लोग भाभी से पहली बार मिलने वाले हैं, इसलिए उसके लिए कुछ उपहार लाए हैं। उसकी बात सुनते ही सुरेश ने कहा कि यारों इसकी क्या जरूरत थी। पर उसके दोस्तो ने हँसकर कहा कि जरूरत थी भाई, हमारी भी तो भाभी है, हम पहली बार उससे मिल रहे हैं, तो बिना कुछ दिए कैसे रह सकते हैं।

इसके बाद उसके दोस्त ने कुटिल मुस्कान चेहरे पर लाते हुए सुरेश से कहा कि यार सुरेश, क्यों न भाभी को सरप्राइज दिया जाए। एक काम करो, तुम घर जाओ और बिना किसी को बताए भाभी को घुमाने के बहाने यहाँ लाओ, हम लोग यहाँ भाभी को यह सब उपहार दे देंगे और उसके बाद फिर से तुम दोनों के साथ तुम्हारे घर चलेंगे। भोला सुरेश हाँ में हाँ मिलाते हुए तेज कदमों से घर की ओर गया और लगभग 20 मिनट के बाद चमेली को लेकर दोस्तों के पास वापस आ गया। फिर क्या था, चमेली से वे तीनों दोस्त एकदम से अपनी भाभी की तरह मिले। चमेली को भी बहुत अच्छा लगा। इसके बाद जब चमेली ने उन्हें घर चलने के लिए कहा तो अचानक उनके तेवर थोड़े से बदले नजर आए। एक दोस्त सुरेश के पास पूरी सख्ती से खड़ा हो गया और उसने सुरेश को पकड़ लिया और सुरेश कुछ समझ पाता इससे पहले ही उसके दोस्त ने दाँत भींजते हुए तेज आवाज में सुरेश से कहा कि, मैं अपनी बहन की शादी तुमसे करना चाहता था पर तुम बिना बताए गाँव आकर अपनी शादी कर लिए। उसकी बात सुनकर सुरेश ने भोलेपन से कहा कि भाई, आपने तो कभी हमसे अपनी बहन की शादी के बारे में बात भी नहीं की थी और जब मैं घर आया था तो यहाँ माँ-बापू ने मेरी शादी करवा दी थी। भला मैं उन्हें मना कैसे कर सकता था। पर सुरेश की इन भोली बातों का उन तीनों दैत्यों पर कोई असर नहीं हुआ। उनमें से एक दोस्त ने सुरेश को कसकर पकड़ लिया था और दोस्त चमेली का चीरहरण करने लगे थे।

अभी सुरेश या चमेली चिल्लाकर आवाज लगा पाते इससे पहले ही उन दोनों के मुँह में कपड़े थूँस दिए गए। फिर चमेली और सुरेश को उठाकर वे लोग कुछ और घने जंगल में ले गए। घने जंगल में ले जाकर उन लोगों ने सुरेश की हत्या कर दी और चमेली की इज्जत से खेल बैठे ।वह चिल्लाती रही, भीख माँगती रही पर उन भेड़ियों पर कोई असर नहीं हुआ। उन्होंने चमेली को भी मौत के घाट उतारकर, वहीं जंगल में सुखी पत्तियों में उन्हें ढँककर आग लगा दिए। आग लगाने के बाद ये तीनों दोस्त जिधर से आए थे, उधर को भाग निकले। जंगल जलने लगा और जलने लगे चमेली और सुरेश के जिस्म। सब कुछ स्वाहा हो गया था। इस आग से आस-पास के गाँववालों को कुछ भी लेना देना नहीं था, क्योंकि जंगल में आग लगना कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी। कभी भी कोई भी अपनी लंठई में जंगल में आग लगा दिया करता था। धीरे-धीरे समय बीतने लगा। रात तक जब चमेली और सुरेश घर नहीं आए तो सुरेश के पिताजी ने सुरेश के आने और चमेली को लेकर जाने की बात अपने पड़ोसियों को बताई। उसी रात को सुरेश और उनके कुछ पड़ोसी मशाल लेकर चमेली और सुरेश को खोजने निकल पड़े। काफी खोजबीन के बाद भी इन दोनों का पता नहीं चला। दूसरे दिन सुबह पुलिस में खबर दी गई पर पुलिस भी क्या करती। थोड़ा-बहुत छानबीन की पर उन दोनों का कोई पता नहीं।

अब सुरेश के माँ-बाप और गाँव वालों को लगने लगा था कि सुरेश अपनी पत्नी को लेकर बिना बताए कोलकाता चला गया। शायद उसे डर था कि अगर घर वालों को बताकर ले जाएँगे तो वे ले जाने नहीं देंगे। आखिर कोलकाता में सुरेश कहाँ रहता है, क्या करता है, इन सब बातों के बारे में भी सुरेश के माता-पिता और गाँववालों को बहुत कम ही पता था। धीरे-धीरे करके 6-7 महीने बीत गए। अब सुरेश के माता-पिता बिना सुरेश और चमेली के जीना सीख गए थे।

इधर कोलकाता में एक दिन अचानक एक दोस्त के घर पर कोहराम मच गया। हुआ यह था कि किसी ने बहुत ही बेरहमी से उसके शरीर को दाँतों से काट खाया था, उसके शरीर पर जगह-जगह भयानक दाँतों के निशान भी पड़े थे और वह इस दुनिया को विदा कर गया था। पुलिस के पूछताछ में उसके घरवालों ने बताया कि पिछले 1 महीने से उसका किसी लड़की के साथ चक्कर था। वे दोनों बराबर एक दूसरे से मिलते थे पर लड़की कौन थी, कैसी थी, किसी ने देखा नहीं था। पर इसी दौरान पुलिस को उसकी बहन से एक अजीब व डरावनी बात पता चली। उसकी बहन ने बताया कि एक दिन जब उसका भाई घर से निकला तो वह भी पीछे-पीछे उसके जाने लगी थी। वह बस्ती से निकलकर एक सुनसान रास्ते में बनी एक पुलिया पर बैठ गया था। वहाँ से मैं लगभग 15 मीटर की दूरी पर एक बिजली के खंभे की आड़ में खड़ी होकर उसपर नजर रख रही थी। मुझे बहुत ही अजीब लगा क्योंकि ऐसा लग रहा था कि भाई किसी से बात कर रहा है, किसी को पुचकार रहा है पर वहाँ तो भाई के अलावा कोई था ही नहीं। फिर मुझे लगा कि कहीं भइया पागल तो नहीं हो गए। अभी मैं यही सब सोच रही थी तभी एक भयानक, काली छाया मेरे पास आकर खड़ी हो गई। वह छाया बहुत ही भयानक थी पर छाया तो थी पर छाया किसकी है, यह समझ में नहीं आ रहा था। मैं पूरी तरह से डर गई थी। फिर अचानक वह छाया अट्टहास करने लगी और चिल्लाई, “अब तेरा भाई नहीं बचेगा। नोचा था न मुझे, मैं भी उसे नोच-नोचकर खा जाऊँगी। और हाँ एक बात तूँ याद रख, अगर यह बात किसी को भी बताई तो मैं तेरे पूरे घर को बरबाद कर दूँगी।” इतना कहते ही उसकी बहन सुबक-सुबक कर रोने लगी। इतना सुनते ही पुलिस और आस-पास जुटे लोग सदमे में आ गए और पूरी तरह से डर भी गए। क्योंकि उसका जो हाल हुआ था, वह यह बयाँ कर रहा था कि इसके साथ जो हुआ है वह किसी इंसान ने नहीं बल्कि किसी भूत-प्रेत ने ही किया होगा।

पर उसकी बहन का ये कहना ही काफी नहीं था। पुलिस ने जब अपने खोजी अभियान को तेज किया तो उन्हें गाँव से कुछ दूरी पर ही सुरेश और चमेली की जली हुई लाशें मिलीं। यह मामला गाँव में आग की तरह फैल गया और पुलिस ने तुरंत इस दिशा में कार्यवाही शुरू कर दी। गांव के लोग भी इस बात को लेकर चिंतित थे और उन्होंने मिलकर निर्णय लिया कि सुरेश और चमेली की आत्माओं की शांति के लिए पूजा-पाठ किया जाए।

पुलिस ने जब गहराई से छानबीन शुरू की तो एक-एक करके सुरेश के बाकी दोस्तों की रहस्यमय मौतें सामने आने लगीं। हर एक की मौत किसी अजीब और भयानक तरीके से हुई थी। कोई जला हुआ पाया गया, कोई पानी में डूबा हुआ और शरीर पर घाव भी थे, जैसे किसी जानवर ने नोचा हो। ये मौतें गाँव और शहर दोनों को दहशत में डालने के लिए काफी थीं।

उसकी बहन ने बताया कि उसने एक रात सुरेश और चमेली को सपने में देखा था, वे दोनों उसे किसी अज्ञात शक्ति से बचाने के लिए विनती कर रहे थे। उसने पुलिस को बताया कि सुरेश और चमेली की आत्माएँ शांति चाहती थीं और वो केवल न्याय की उम्मीद कर रहे थे।

गाँववालों ने मिलकर सुरेश और चमेली की आत्माओं की शांति के लिए एक बड़ा यज्ञ करवाया। यज्ञ के दौरान, गाँव में अजीबोगरीब घटनाएँ घटने लगीं। किसी ने चमेली की आवाज़ सुनी, तो किसी ने सुरेश को देखा। इन घटनाओं ने लोगों को और भी ज्यादा भयभीत कर दिया। यज्ञ के अंत में, पुरोहित ने घोषणा की कि सुरेश और चमेली की आत्माएँ अब मुक्त हो चुकी हैं और गाँव अब सुरक्षित है।

इस घटना के बाद गाँव के लोग पहले से अधिक सतर्क हो गए और उन्होंने अपने रिश्तों और संबंधों को अधिक महत्व देना शुरू किया। गाँव में अब हर कोई अपने पड़ोसियों और दोस्तों के साथ मिलकर रहने लगा और बाहरी लोगों पर अधिक विश्वास करने से बचने लगे। इस भयानक घटना ने उन्हें यह सिखाया कि दोस्ती और विश्वास में सावधानी बरतना कितना जरूरी है। और गांव वाले खुशी – खुशी रहने लगे।

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