भूतिया डॉक्टर का क्लिनिक

🌑 कहानी की शुरुआत: रहस्य की जड़
“हर गाँव की कुछ पुरानी कहानियाँ होती हैं…
लेकिन रामपुर की कहानी अब भी ज़िंदा है…
क्योंकि इसका किरदार कभी मरा ही नहीं।”

रामपुर… उत्तर भारत के एक सुदूर इलाका, जहाँ समय मानो थम सा गया था। चारों ओर हरियाली, पुराने मिट्टी के मकान, और गलियों में वो पुरानी बातें… जो दादी-नानी की कहानियों से निकल कर कभी ख़त्म नहीं हुई थीं।

इस गाँव में एक नाम बहुत मशहूर था – डॉ. शेखर।
कहते हैं, उनकी दवाइयों में कोई जादू था। लोग मीलों दूर से इलाज के लिए आते थे। लेकिन जितने रहस्यमयी उनके इलाज थे, उतनी ही रहस्यमयी थी उनकी ज़िंदगी।

डॉ. शेखर अकेले रहते थे। उनका क्लिनिक गाँव से थोड़ी दूरी पर, एक पुराने बरगद के पेड़ के पास था। वो हमेशा कहते –
“इलाज का वक्त दिन हो या रात, बीमारी का कोई समय नहीं होता।”
लोग उन्हें भगवान मानते थे…
पर एक दिन, सब कुछ बदल गया।

🌩️ तूफानी रात – जब वक़्त थम गया
एक रात… सब कुछ बदल गया।
तेज़ तूफ़ान, ज़ोरदार बारिश, बिजली की गड़गड़ाहट – पूरा रामपुर काँप उठा।
लोगों ने खिड़कियाँ बंद कीं, दरवाज़े बंद किए… पर डॉक्टर शेखर का क्लिनिक खुला था।

सुबह जब सब शांत हुआ, लोग जागे… तो एक अजीब सन्नाटा छाया हुआ था।
किसी ने डॉक्टर को देखा नहीं।
ना घर में, ना क्लिनिक में।
उनका बिस्तर खाली था… और क्लिनिक की टेबल पर खून के धब्बे थे।
गाँव में अफवाह फैल गई —
“डॉक्टर मर गए हैं…!”
“नहीं, वो गायब हुए हैं!”
“शायद कोई उन्हें उठा ले गया…”
और फिर, शुरू हुआ डर का असली खेल।

🌘 रात 12 बजे खुलता है क्लिनिक…
कुछ ही दिन बाद, लोग कहने लगे कि रात के 12 बजे डॉक्टर का क्लिनिक अब भी खुलता है।
वहाँ रोशनी जलती है।
कभी-कभी किसी की परछाईं दिखती है।
और एक बुज़ुर्ग ने बताया —
“मैंने उसे देखा… काले कोट में… मुझसे बोला — ‘इलाज ज़रूरी है, अंदर आओ।'”
गाँववालों ने जाना छोड़ दिया।
क्लिनिक के पास जाना मना हो गया।
लेकिन एक लड़का था… श्याम… जो इस डर को नजरअंदाज़ कर गया।

🧓 श्याम की मजबूरी
श्याम एक सीधा-सादा लड़का था। उसका पिता हफ़्तों से बीमार था। गाँव के वैद्य ने जवाब दे दिया था।
और तब किसी ने धीरे से कहा —
“अगर हिम्मत हो तो रात 12 बजे डॉक्टर के क्लिनिक जाना… वो अब भी इलाज करता है…”
श्याम ने सोचा, “अगर ये सच है… तो मैं अपने पिता को बचा सकता हूँ।”

🕛 आधी रात – डर की पहली दस्तक
रात के 12 बजते ही श्याम अपने पिता को लेकर क्लिनिक पहुँचा।
चारों ओर सन्नाटा।
पुराना बरगद हवा में हिल रहा था।
खिड़की से हल्की नीली रोशनी निकल रही थी… और दरवाज़ा खुद-ब-खुद खुल गया।
अंदर से आवाज़ आई —
“आ जाओ… मैं तुम्हारे पिता का इंतज़ार कर रहा हूँ…”
श्याम की रीढ़ में सिहरन दौड़ गई।
उसने देखा – डॉक्टर शेखर वहीं खड़े थे।
चेहरा वैसा ही… लेकिन रंग फीका, आँखें गहराई में डूबी हुई… मानो कोई जीवित लाश हो।

🧪 भयानक इलाज
डॉक्टर ने बिना कुछ पूछे इलाज शुरू किया।
टेबल पर पुराने जंग लगे औज़ार रखे थे… जिनसे बदबू आ रही थी।
दीवारों पर अजीब संस्कृत में कुछ लिखा था।
बीच-बीच में धीमी आवाजें आती थीं –
“हमें मत छोड़ो…”
“वो हमारे साथ भी यही किया…”

श्याम कांपने लगा।
डॉक्टर ने कहा —
“तुम्हारे पिता ठीक हो जाएँगे… लेकिन एक शर्त है… तुम किसी से इस जगह का ज़िक्र नहीं करोगे।”
श्याम ने सिर हिलाया।
वो डॉक्टर के डरावने चेहरे से आँखें मिलाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था।
इलाज पूरा हुआ… और जैसे ही श्याम बाहर निकला…
डॉक्टर की आवाज़ गूंजी —
“अगर किसी को बताया… तो मैं लौटूँगा… और फिर हमेशा के लिए तुम्हारे साथ रहूँगा…”

😱 डरावना अंत (संशोधित)
श्याम घर पहुँचा… और चमत्कार हो गया —
उसका पिता एकदम ठीक हो गया था।
गाँव वाले हैरान थे, लेकिन श्याम खामोश था… जैसे उसकी ज़ुबान किसी ने छीन ली हो।
रात बीतती गईं… लेकिन कुछ अजीब होने लगा।
श्याम अब रात को सोता नहीं था।
आईनों में अजनबी चेहरों की परछाइयाँ दिखती थीं।
कभी दीवारों पर खून से कुछ लिखा होता था –
“तुम अब हमारे बीच हो…”
एक दिन उसकी माँ ने देखा —
श्याम खुद अपने चेहरे पर चाकू चला रहा था…
और बड़बड़ा रहा था —
“मैं डॉक्टर हूँ… इलाज ज़रूरी है…”
माँ चीखी… लेकिन श्याम हँस रहा था… बिल्कुल उसी तरह जैसे डॉक्टर शेखर हँसता था।

💀 रात 12 बजे – क्लिनिक फिर खुला
उस रात… बरसों बाद… डॉक्टर का क्लिनिक फिर से खुला।
लेकिन इस बार, अंदर डॉक्टर शेखर नहीं थे।
वहाँ श्याम बैठा था… सफेद कोट में…
चेहरे पर वही डरावनी मुस्कान… और हाथ में जंग लगा हुआ औज़ार।
गाँव के दो बच्चे जो गलती से वहाँ चले गए थे… फिर कभी लौटे नहीं।

अगली सुबह क्लिनिक की दीवार पर खून से लिखा था —
“इलाज पूरा हुआ…”
और तभी से…
हर पूर्णिमा की रात… क्लिनिक की लाइट जलती है।
और अंदर से दो आवाजें आती हैं —
एक बूढ़ी… और एक जवान…
“अगला मरीज़ कौन है…?”
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