रास्ते में हुआ छलावा से सामना

रास्ते में हुआ छलावा से सामना
धुंध में मिला छलावा – गाँव की सच्ची दहशत

सर्दियों की ठंडी रातें, जब धुंध में हर चीज़ धुंधली और रहस्यमयी लगने लगती है, उस समय अगर कोई अकेला सुनसान रास्ते पर हो… तो क्या हो सकता है? यह कहानी एक ऐसे ही अनुभव की है जो आज भी हमारे परिवार में रह-रह कर दोहराया जाता है। यह घटना मेरे परनाना की बहन – सरस्वती देवी के साथ घटी थी, जिसे सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

मुख्य पात्र

सरस्वती देवी उस समय 21 वर्ष की थीं। पढ़ाई-लिखाई में बहुत तेज़, स्वभाव से शांत और मददगार, लेकिन अंदर से बहुत हिम्मती भी। उस ज़माने में लड़कियों को घर से बाहर जाने की इजाजत बहुत कम मिलती थी, लेकिन सरस्वती ने अपने व्यवहार से सभी को प्रभावित किया था।

कहानी की शुरुआत – गाँव और उसके रहस्य

गाँव की रात

सन 1974 की बात है। यह घटना उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के एक छोटे से गाँव सुपेला में घटी थी। गाँव बहुत शांत और साधारण था |

लेकिन हर गाँव की तरह इसमें भी कुछ ऐसे किस्से प्रचलित थे जो केवल रात के सन्नाटे में, चबूतरे पर बैठे बुज़ुर्गों की जुबानी सुनाई देते थे

उन्हीं में एक था – छलावा।

छलावा, एक ऐसी आत्मा जो इंसानों का रूप बदलकर उन्हें गुमराह करती है। गाँव के लोग कहते थे – “अगर रात के समय कोई तुम्हें पुकारे, तो बिना सोचे पलटना मत, हो सकता है वो इंसान ना हो।”

एक दिन सरस्वती पास के गाँव पलिया अपने मौसी के घर गयी थीं, जो लगभग एक किलोमीटर दूर था। घर में सबने कहा था – “अकेली मत जाना, सूरज ढल चुका है” लेकिन उन्होंने कहा – “मैं बस थोड़ी ही देर में लौट आऊंगी।”

धुंध, ठंडी हवा और सुनसान रास्ता ।
यह दिसंबर की सर्द रात थी। शाम के 7 बजे ही चारों ओर घना कोहरा छा गया था। सरस्वती के पास एक बैटरी वाली टॉर्च थी और उन्होंने खुद को शॉल में अच्छी तरह लपेट रखा था। वह धीरे-धीरे गाँव की सुनसान सड़क पर चल रही थीं। पूरा रास्ता शांत था, सिर्फ उनके कदमों की आहट और पत्तों की सरसराहट सुनाई दे रही थी।

जब वह रास्ते के बीच पहुँचीं, तभी उन्हें कुछ अजीब सा महसूस हुआ। मानो कोई उनका पीछा कर रहा हो। लेकिन पीछे देखने पर कोई नहीं था।

पहली झलक – लाल आँखें

काली परछाई और लाल आंखों वाला छलावा

अचानक उन्होंने अपनी टॉर्च से सामने देखा – एक काली आकृति बिल्कुल सड़क के बीच खड़ी थी। इंसान जैसी, लेकिन पूरी तरह काले धुएं जैसी। उसकी कोई स्पष्ट आकृति नहीं थी, सिर्फ उसकी लाल चमकती हुई आँखें साफ़ दिख रही थीं।

वो परछाई उन्हें घूर रही थीं। सरस्वती वहीं थम गईं। उन्होंने टॉर्च को कई बार उसकी ओर घुमाया लेकिन उसका चेहरा, हाथ या कोई शरीर दिखाई नहीं दे रहा था, सिर्फ एक परछाई और दो आँखें।

आकृति का बदलता आकार

जैसे ही सरस्वती पीछे मुड़ीं, वो आकृति उनकी ओर बढ़ने लगी। लेकिन अजीब बात ये थी कि वो चलते-चलते अपना आकार बदल रही थी – कभी वो एक बूढ़ी औरत जैसी दिखती, कभी एक बच्चा, कभी किसी जानवर जैसी। लेकिन हर बार उसका रंग गहरा काला ही रहता था और वही लाल आँखें ।

यह कोई साधारण आत्मा नहीं थी। ये वही था जिसके बारे में गाँव में दादी-नानी की कहानियाँ सुनी थीं – छलावा।

भागने की कोशिश

डर से भागती युवती

डर के मारे सरस्वती ने दौड़ लगाई। उनके पैर कांप रहे थे, लेकिन जान बचानी थी। वो उसी मौसी के घर की ओर भागीं, जहाँ से आयी थीं। रास्ता ढलान वाला था और फिसलन भी थी, लेकिन उस समय उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा था। पीछे से लगता था जैसे वो चीज़ उनके सिर के ऊपर उड़ती हुई आ रही हो।

उन्होंने चिल्लाकर कहा – “बचाओ! कोई है?”

वो दौड़ती-दौड़ती किसी तरह मौसी के घर पहुँच गई।

जैसे ही उन्होंने मौसी का दरवाज़ा खटखटाया, अंदर से मौसा जी बाहर आये। उन्होंने सरस्वती को अंदर खींचा और दरवाज़ा बंद किया। सरस्वती का शरीर काँप रहा था, मुँह से आवाज़ नहीं निकल रही थी। मौसी ने उन्हें पीने को पानी दिया।

उन्होंने देखा कि सरस्वती के पाँव में हल्का सा निशान था, जैसे किसी ने पकड़ने की कोशिश की हो।

उस पूरी रात सरस्वती कुछ नहीं बोलीं। आँखें फटी हुई थीं और चेहरा पीला पड़ चुका था। मौसी ने गाँव में एक सयानी महिला को बुलवाया – विमला काकी, जो टोने-टोटके जानती थीं।

विमला काकी ने सरस्वती को देखकर कहा – “इस पर छलावे की छाया पड़ चुकी है।” उन्होंने कुछ धागे और नीम के पत्ते जलाए, और सरस्वती के चारों ओर घूमते हुए कुछ मंत्र बोले।

अगले दिन सुबह उनके पिता उन्हें लेने आये। सरस्वती ने पहली बार अपना मुँह खोला और सारी बात बतायी – काली आकृति, लाल आँखें, बदलते रूप, पीछा और वह भयावह एहसास। पूरा परिवार चौंक गया।

विमला काकी ने कहा – “वो छलावा था, जिसकी कहानियाँ तुम हँसते हुए सुनती थीं, आज खुद उसका सामना कर आयी हो।”

गाँव की हलचल

सुबह गाँव में हवन और तांत्रिक पूजा

इस घटना के बाद पूरे गाँव में हलचल मच गयी। लोग घरों के बाहर कम निकलने लगे। खासकर महिलाएँ अकेले खेत या पड़ोसी के यहाँ जाना बंद कर चुकी थीं।

गाँव के मंदिर के पुजारी ने पूरे गाँव में हवन करवाया। एक तांत्रिक बाबा को बुलाया गया, जिन्होंने गाँव के बीच पीपल के पेड़ के नीचे पूजा की और कहा – “ये आत्मा इस क्षेत्र में वर्षों से भटक रही है, किसी समय ये इंसान रही होगी लेकिन अब छलावे में बदल चुकी है।”

सरस्वती का जीवन बदल गया

उस घटना के बाद सरस्वती कभी अकेले घर से बाहर नहीं निकलीं। उन्होंने जीवन में शादी नहीं की और अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल में अपना जीवन बिता दिया। आज वो 70 साल की हैं, और जैसे ही सूरज ढलता है, वह खिड़कियाँ बंद कर लेती हैं।

वह आज भी उस रात की बात याद करते हुए कांप जाती हैं। उन्होंने एक बार कहा था – “वो चीज़ इंसानी नहीं थी, लेकिन वो ये जरूर जानती थी कि मैं डर रही हूँ। वो मेरे डर से ताकत ले रही थी।”

अंतिम विचार – छलावा आज भी है?

क्या छलावा आज भी मौजूद है? क्या वो अब भी सुनसान रास्तों पर भटकता है? या फिर वह किसी और को अपना शिकार बना चुका है?

यह कहानी उन सभी लोगों के लिए चेतावनी है जो यह सोचते हैं कि ऐसी बातें सिर्फ कहानियाँ होती हैं।

कभी-कभी डर केवल एक भावना नहीं, बल्कि एक सच्चाई भी हो सकता है।

👻 “क्या आपके साथ भी कभी ऐसा डरावना अनुभव हुआ है? नीचे कमेंट में जरूर बताएं… हो सकता है अगली कहानी आपकी हो!”

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FAQs

छलावा क्या होता है?

छलावा एक रहस्यमयी आत्मा मानी जाती है जो इंसानों का रूप बदलकर उन्हें गुमराह करती है। यह खासतौर पर सुनसान रास्तों पर रात में दिखाई देती है और लोगों को भ्रमित कर डराने का प्रयास करती है।

छलावा की पहचान कैसे की जा सकती है?

छलावा अक्सर काले धुएं जैसी आकृति में दिखाई देता है, जिसकी लाल चमकती आंखें होती हैं। यह कभी बूढ़े, कभी बच्चे या जानवर का रूप ले सकता है और सुनसान जगह पर अकेले इंसान को निशाना बनाता है।

क्या आज भी छलावा जैसी घटनाएं होती हैं?

गाँवों में आज भी लोग दावा करते हैं कि सुनसान रास्तों और वीरान इलाकों में ऐसी आत्माओं का असर महसूस होता है। हालांकि विज्ञान इन्हें अंधविश्वास मानता है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में ऐसी घटनाओं की चर्चा होती रहती है।

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