लाल दरवाज़ा

लाल दरवाज़ा
Laal Darwaza

प्रस्तावना

गांव के बाहर एक वीरान कोठी खड़ी थी — उसकी पुरानी दीवारों पर काई जमी थी, खिड़कियों के कांच टूट चुके थे और हर कोने में मकड़ियों के जाले लटक रहे थे।

मगर उस कोठी की सबसे डरावनी चीज़ थी उसका लाल दरवाज़ा।
लोग कहते थे कि ये दरवाज़ा शापित है। किसी ने अगर उसे खोला तो वो दोबारा गांव वापस नहीं लौटा।

लेकिन आज तक किसी ने ये सच अपनी आंखों से नहीं देखा… या शायद देखने वाला कभी लौट कर आया ही नहीं।

कहानी की शुरुआत

वह रात सर्द थी। आसमान में बादल छाए हुए थे और हवा में एक अजीब-सी सिसकारी गूंज रही थी।
अर्जुन — एक साहसी युवक जो अंधविश्वास पर यकीन नहीं करता था, अपने दोस्तों से शर्त लगाकर इस कोठी की ओर बढ़ा।

“क्या तुम लोग सच में डरते हो उस लाल दरवाज़े से?” अर्जुन ने दोस्तों से हंसते हुए कहा।
रवि, उसका जिगरी दोस्त, कांपती आवाज़ में बोला, “अर्जुन, मजाक मत कर। ये कोई आम दरवाज़ा नहीं है। इस पर किसी बुरी आत्मा का साया है। जो भी गया, लौटा नहीं।”
“अरे यार, वो सब कहानियां हैं। मैं साबित करके दिखाऊंगा कि ये सिर्फ एक पुरानी कोठी है, और कुछ नहीं।” अर्जुन ने कहा और हाथ में टॉर्च पकड़े आगे बढ़ गया।

लाल दरवाज़े का इतिहास

लाल दरवाज़े का इतिहास

गांव के बुज़ुर्ग बताते थे कि ये कोठी करीब 100 साल पुरानी है। एक ज़माने में ये कोठी रईस सेठ हरिदास की थी, जो अपने ज़माने का सबसे अमीर मगर निर्दयी आदमी था।

कहते हैं कि सेठ हरिदास ने अपनी हवस और लालच के लिए कई लोगों की जान ली। उस कोठी के अंदर उसने एक गुप्त तहखाना बनवाया था, जहां वो लोगों को बंद करके मार डालता था।

लाल दरवाज़ा उसी तहखाने का द्वार था। जब पुलिस ने सेठ को पकड़ना चाहा, तो एक रात वो खुद को उसी तहखाने में बंद करके जिंदा जल मरा।

उसके बाद से वो लाल दरवाज़ा कभी नहीं खुला। गांववालों का मानना था कि सेठ की आत्मा आज भी उस दरवाज़े के पीछे कैद है, और जो भी उसे खोलता है, वो उस आत्मा का शिकार बन जाता है।

हवेली का वर्णन

अर्जुन ने जैसे-जैसे कोठी की ओर कदम बढ़ाए, उसके दिल की धड़कनें तेज होती गईं।
कोठी के मुख्य गेट की लोहे की जाली में से झांकता चांदनी का उजाला कुछ भी साफ नहीं दिखा रहा था।
हवा से दरवाज़े चरचराने लगे। चारों ओर सूखे पत्तों की सरसराहट सुनाई दे रही थी।

अर्जुन ने दरवाज़ा धक्का देकर खोला और अंदर दाखिल हुआ। कोठी के अंदर की बदबू से उसका दम घुटने लगा।
दीवारों पर धब्बे, फर्श पर टूटे फर्नीचर और जगह-जगह बिखरे पुराने कागज और हड्डियां पड़ी थीं।

फिर उसकी नजर पड़ी उस लाल दरवाज़े पर।
वो दरवाज़ा साधारण नहीं था। लकड़ी पर लाल रंग की परत जमी थी, जो वक्त के साथ काली पड़ चुकी थी। उस पर अजीब-अजीब आकृतियाँ और तांत्रिक मंत्र खुदे थे।
दरवाज़े के चारों ओर दीवार पर खून जैसे निशान थे।

लाल दरवाज़े के करीब

अर्जुन की टॉर्च की रोशनी जैसे-जैसे दरवाज़े पर पड़ी, दरवाज़े की सतह से कुछ अजीब-सी ऊर्जा निकलती महसूस हुई।
“क्या सच में ये दरवाज़ा…?” अर्जुन खुद से बुदबुदाया।
उसने हाथ बढ़ाकर दरवाज़े को छूने की हिम्मत की। ठंडी, बर्फ जैसी सतह थी।
फिर अचानक उसे दरवाज़े की दूसरी ओर किसी के कराहने की आवाज़ सुनाई दी —
“बचाओ… कोई है… बचाओ…”

अर्जुन की रूह कांप उठी। मगर उसका जिज्ञासु मन डर से लड़ता रहा।
“शायद कोई फंसा हो अंदर… मैं मदद करूंगा,” उसने खुद से कहा।

दरवाज़ा खुलता है

अर्जुन ने जैसे ही दरवाज़े को धक्का दिया, दरवाज़ा धीमे-धीमे चरचराता हुआ खुलने लगा।
अंदर से एक सड़ी लाश की बदबू का भभका बाहर निकला।
अंधेरे में कुछ भी साफ नहीं दिख रहा था।
उसने मोबाइल की फ्लैश लाइट जलाकर अंदर झांका।

दरवाज़ा खुलता है

तहखाने में दीवारों पर खून के धब्बे थे। लोहे की जंजीरों में जकड़े कंकाल लटक रहे थे। फर्श पर जले हुए इंसानी अवशेष पड़े थे।
तभी… दरवाज़ा तेज आवाज़ के साथ खुद-ब-खुद बंद हो गया।

“कौन है?” अर्जुन चिल्लाया।
“तू आ ही गया… अब लौट नहीं पाएगा…” एक गूंजती हुई आवाज़ चारों ओर फैल गई।

आत्मा का प्रकोप

चारों ओर धुंध फैल गई। अर्जुन ने देखा — एक काला साया धीरे-धीरे उसके पास आ रहा था।
चेहरा बिना आंखों का, सिर पर आग की लपटें, और मुंह से निकली अजीब गंध।
“मैं सेठ हरिदास हूं… तूने मेरी नींद तोड़ी… अब तेरा भी वही अंजाम होगा जो उन सबका हुआ…”

अर्जुन ने भागने की कोशिश की लेकिन उसके पैर जैसे जमीन से चिपक गए।
साया करीब आता गया। उसकी हड्डियों में दर्द की एक लहर दौड़ गई।
अर्जुन की आंखों से आंसू बह निकले।
“माफ कर दो… मैंने गलती कर दी… मैं यहां से चला जाऊंगा…”

मगर साया हंसा — वो हंसी इतनी डरावनी थी कि दीवारें कांपने लगीं।
“अब देर हो चुकी है…”

खौफनाक अंत

अर्जुन की चीखें हवेली की दीवारों से टकरा कर बाहर आईं। गांववालों ने रात में वो चीखें सुनीं मगर कोई पास जाने की हिम्मत नहीं जुटा सका।
सुबह जब लोग पहुंचे, लाल दरवाज़ा फिर से बंद था।
अंदर से बदबू और गूंजती हंसी आ रही थी।
अर्जुन अब कभी गांव नहीं लौटा… वो लाल दरवाज़े का एक और शिकार बन चुका था

कहते हैं, आज भी जब रात को हवाएं तेज चलती हैं, तो लाल दरवाज़े से अर्जुन की चीखें और सेठ हरिदास की हंसी सुनाई देती हैं…

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