आखिरी मंज़िल

रवि हर रात ऑफिस से देर से लौटता था।
उस रात लिफ्ट खराब थी, तो वो सीढ़ियों से 8वीं मंज़िल चढ़ने लगा।
7वीं मंज़िल पर किसी ने पीछे से कहा—”रुको… मेरे साथ चलो…”
रवि ने मुड़कर देखा… कोई नहीं था। डर के मारे वो तेजी से ऊपर भागा।

8वीं मंज़िल पर दरवाज़ा अपने आप खुल गया।
अंदर से रोने की आवाज़ आ रही थी।
जैसे ही वो अंदर गया, दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया।
फिर एक धीमी मगर भयानक आवाज़ आई—”अब तू कभी नीचे नहीं जाएगा…”

अगले दिन अख़बार में खबर थी:
“रवि की लाश 8वीं मंज़िल के उस फ्लैट से मिली, जो दो सालों से खाली था…”